आषाढ़ का एक दिन
सामान्य लेखक-परिचय
मोहन राकेश हिन्दी के प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और उपन्यासकार हैं। इन्हें हिन्दी साहित्य के ’नई कहानी’ आंदोलन का नायक माना जाता है। उनकी कहानियों, उपन्यासों और
नाटकों की कथावस्तु शहरी मध्यवर्ग के जीवन पर आधारित है। उनकी रचनाओं में भारत-विभाजन
की पीड़ा, स्त्री-पुरुष संबंध, व्यक्ति के
अकेलेपन, तनाव व असुरक्षा के भाव आदि
यथार्थ रूप प्रस्तुत हुए हैं।
प्रमुख रचनाएँ – अँधेरे बंद कमरे, आधे-अधूरे,
लहरों के राजहंस आदि।
मोहन राकेश द्वारा रचित कालजयी रचना ’आषाढ़ का एक दिन’
हिन्दी का प्रसिद्ध नाटक है जिसे हिन्दी के आधुनिक युग का प्रथम नाटक माना जाता
है। यह एक त्रिखंडीय नाटक है। 1959 में इस नाटक को ’संगीत
नाटक अकादमी’ पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है।
इस नाटक का शीर्षक कालिदास की कृति मेघदूतम् की शुरुआती पंक्तियों से लिया गया है क्योंकि आषाढ़ का महीना उत्तर भारत में वर्षा ऋतु का आरंभिक महीना होता है, इसलिए शीर्षक का अर्थ "वर्षा ऋतु का एक दिन" भी लिया जा सकता है।
मोहन राकेश ने लिखा कि "मेघदूत पढ़ते हुए मुझे लगा करता था कि वह कहानी निर्वासित यक्ष की उतनी नहीं है, जितनी स्वयं अपनी आत्मा से निर्वासित उस कवि की, जिसने अपनी ही एक अपराध-अनुभूति को इस परिकल्पना में ढाल दिया है।" मोहन राकेश ने कालिदास की इसी निहित अपराध-अनुभूति को "आषाढ़ का एक दिन" का आधार बनाया।
अंक-१
मुख्य बातें
Ø मल्लिका का प्रकृति सौंदर्य पर मुग्ध होना,
कालिदास के साथ भीगकर घर लौटना, अत्यधिक प्रसन्न होना।
Ø कवि कालिदास से मल्लिका का भावानात्मक
प्रेम-संबंध, माँ अम्बिका को यह नापसंद होना। मल्लिका को अपने प्रेम-संबंध में कुछ
भी बुरा न दिखना।
Ø घायल हरिणशावक को लेकर कालिदास का मल्लिका के घर
आना, मल्लिका द्वारा देखभाल करना, हरिणशावक को लेकर राजपुरुष दंतुल के साथ
कालिदास का विवाद होना।
Ø ’ऋतुसंहार’ के कवि कालिदास को उज्जयिनी का
राजकवि बनाने के लिए सम्राट चंद्रगुप्त का निमंत्रण मिलना। आचार्य वररुचि का कालिदास को ले जाने
आना, कालिदास का जाने से मना करना।
Ø कालिदास के मामा मातुल का
नाराज़ होना, निक्षेप के आग्रह पर मल्लिका का कालिदास को उज्जयिनी जाने के लिए
प्रेरित व प्रोत्साहित करना।
Ø कालिदास का उज्जयिनी
प्रस्थान करना, भावुक मल्लिका को सुख मिश्रित दुख होना।
शब्दार्थ
मेघ-गर्जन – बादलों की आवाज़
अनन्तर – पश्चात, बाद में
प्रकोष्ठ – कमरा
ड्योढ़ी – देहली
तल्प – तख्त, पलंग
कुशा – एक प्रकार की घास
उपत्यका – घाटी
बकुल – बगुला
धारासार – मूसलाधार
आक्रोश – गुस्सा
आर्द्र – नम, गीला
उष्णता – गर्मी
भर्त्सना – निन्दा, बुराई
शर्करा – शक्कर, चीनी
प्रयोजन – मतलब
अपवाद – बदनामी
विवेचन – विश्लेषण
आत्म-प्रवंचना – अपने आपको धोखा देना
वरण – चुनना
आस्तरण – बिस्तर
दूर्वा – दूब घास
सामुद्रिक – ज्योतिष
पार्वत्य-भूमि – पहाड़ी क्षेत्र
क्रीत – खरीदा हुआ
पूर्वाग्रह – पहले से कोई धारणा बना लेना
प्रपितामह – परदादा
दौहित्र – नाती
भागिनेय – भांजा
वंशावतंस – वंश का चिराग
अभिस्तुति – प्रार्थना
निष्णात – निपुण
अभ्यागत – मेहमान, अतिथि
अग्निकाष्ठ – मशाल
प्रान्तर – प्रदेश
उल्मुक – मशाल
ब्राह्म-मुहूर्त – सूर्योदय से ठीक पहले का समय
अनर्गलता – गैर ज़िम्मेदार बातें
रिक्तता – खालीपन
संवरण – नियंत्रण
उर्वरा – उपजाऊ
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर
“कालिदास अपनी भावुकता में भूल रहे हैं कि इस
अवसर का तिरस्कार करके वे बहुत कुछ खो बैठेंगे। योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का
निर्माण करती है। शेष पूर्ति प्रतिष्ठा द्वारा होती है। कालिदास को राजधानी अवश्य
जाना चाहिए।“
(i) वक्ता कौन है? उपर्युक्त वार्तालाप कहाँ, किनके मध्य हो रहा
है?
(ii) यहाँ किस अवसर की चर्चा की जा रही है?
(iii) कालिदास राजधानी क्यों नहीं जाना चाहता है?
(iv) कालिदास को राजधानी जाने के लिए किसने, किस तरह प्रेरित
किया?
उसके
विषय में संक्षेप में बताएँ।
उत्तर
(i) उपर्युक्त कथन का वक्ता निक्षेप है। प्रस्तुत वार्तालाप अम्बिका, मल्लिका
और
निक्षेप के मध्य अम्बिका के घर पर हो रहा है।
(ii) कालिदास ने ’ऋतुसंहार’ की रचना की है। उसके इस ग्रंथ की
चर्चा उज्जयिनी में हो रही है। सम्राट चंद्रगुप्त ने स्वयं यह रचना पढ़ी है और उससे
प्रभावित भी हुए हैं। सम्राट कालिदास को सम्मानित कर उन्हें राजकवि का पद देना
चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने आचार्य वररुचि को कालिदास के गाँव भीजा है। इधर
कालिदास इस समान के प्रति उदासीनता दिखाता है, उसे इस पद की कोई लालसा नहीं है।
उपर्युक्त पंक्तियों में इसी अवसर की बात हो रही है।
(iii) कालिदास एक भावुक कलाकार हैं। उसे ग्राम-प्रान्त, वहाँ की
हरियाली, लोग, पशु-पक्षी, मेघ, हवा, पर्वत आदि से बहुत लगाव है। साथ ही उसकी
प्रेमिका मल्लिका भी वहाँ है जिससे वह भावनात्मक स्तर पर जुड़ा हुआ है। इन सबको
छोड़कर वह राजधानी नहीं जाना चाहता। उसे लगता है कि अपनी मिट्टी से कटकर उसके
अण्दर का कलाकार दम तोड़ देना।
(iv) कालिदास को राजधानी जाने
के लिए उसकी प्रेमिका माल्लिका ने प्रेरित किया। कालिदास
का मानना है कि राज्याश्रय स्वीकार करने से सम्मान और ख्याति तो मिलेगी, पर
बहुत कुछ छूट भी जाएगा। ग्राम
प्रांतर ही उसकी वास्तविक भूमि है। वह वहाँ की प्रकृति और मल्लिका से अटूट
रूप से जुड़ा है, इन सबसे दूर होने की कल्पना तक वह नहीं कर सकता। साथ
ही उसे यह भी लगता है कि राजधानी जा कर
उसके अंदर का कलाकार जीवित नहीं रह पाएगा। मल्लिका उसे राजधानी जाने
के लिए उत्साहित करते हुए कहती है कि गाँव में उसकी प्रतिभा को विकसित होने का मौका नहीं मिलेगा, राजधानी
की मिट्टी अधिक उर्वरा होगी, जो उसकी कला और व्यक्तित्व
को पूर्णता प्रदान करेगी। उसका कहना है कि वह अकेले राजधानी नहीं जाएगा, बल्कि
वहाँ की वायु, मेघ, हरियाली, मिट्टी आदि भी उसके साथ जाएँगे। वह यह भी कहती है कि
कालिदास उससे दूर कहाँ होगा, वह उसकी यादों में हमेशा बनी रहेगी। कालिदास से मिलने
की इच्छा होते ही वह पर्वत-शिखर पर चढ़
जाया करेगी और उड़कर आते मेघों से घिर जाया करेगी। मल्लिका
इस नाटक की एक प्रमुख पात्र है, जो अपनी माँ अंबिका के साथ एक झोंपड़ी में रहती है।
उसके पिता नहीं हैं, और घर की आर्थिक स्थिति भी कुछ ठीक नहीं है। मल्लिका
और कालिदास के संबंध को माँ पसंद नहीं करती जबकि मल्लिका अपने
प्रेम को भावना के स्तर पर देखती है। यह संबंध उसके लिए अन्य किसी भी संबंध से ऊपर है।
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