सारा आकाश
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर
"सोने को आग में तपना पड़ता है तभी तो वह कुंदन की तरह निखरता है - सभी के जीवन में परीक्षा के क्षण आते हैं _ यह मेरी अग्नि-परीक्षा है। मुसीबतों से इतनी जल्दी घबरा जाना अच्छी आदत नहीं है ऐसे संकट के अवसरों पर अपने को साधे रखना मुझे सीखना होगा। यही तो महान बनने का सबसे पहला गुर है।"
(i) ये पंक्तियाँ कौन-सा पात्र सोचता है और क्यों?
(ii) प्रस्तुत पंक्तियों का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
(iii) विवाह से कौन-सी मुसीबतें पैदा हुई थीं?
(iv) उक्त पात्र इस समस्या का समाधान किस प्रकार करना चाहता है?
प्रश्न - सारा आकाश उपन्यास के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर
संयुक्त परिवार का शाब्दिक आदर्श
चाहे जितना महान् हो, उसका सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि परिवार का कोई भी सदस्य
अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर पाता।
(i) प्रस्तुत कथन कौन किससे कह
रहा है? उपर्युक्त गद्यांश उपन्यास के किस अंक से लिया गया है?
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का
संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
(iii) वक्ता का संक्षिप्त परिचय
दीजिए।
(iv) संयुक्त परिवार के विषय
में वक्ता के विचारों को अपने शब्दों में लिखिए।
(i) प्रस्तुत कथन शिरीष भाई समर
से कह रहे हैं। उपर्युक्त गद्यांश सारा आकाश उपन्यास के उत्तराद्र्ध: सुबह
(प्रश्न-पीड़ित दस दिशाएँ) के अंक 8 से लिया गया है।
(ii) समर जब सड़क पर भटक रहा था
तब उसे दिवाकर और शिरीष भाई मिल गए। समर को परेशान देखकर शिरीष भाई उसकी समस्या
जानना चाहते हैं। समर शिरीष भाई को अमर की शादी के विषय में और अपने घरेलू झंझटों
के बारे बताता है। इस पर शिरीष कहते हैं कि इन समस्याओं की वजह संयुक्त परिवार-व्यवस्था
है। शिरीष भाई संयुक्त परिवार की परम्परा को तोड़ने की बात कहते हैं। उपर्युक्त गद्यांश
इसी संदर्भ में प्रस्तुत किया गया है।
(iii) वक्ता शिरीष भाई हैं।
शिरीष आधुनिक सोच रखने वाले प्रगतिशील व्यक्ति हैं। उनका दृष्टिकोण यथार्थवादी है।
वह तार्किक (Logical) हैं और स्थितियों का तार्किक विश्लेषण करते हैं। वह हिन्दू
धर्म और संस्कारों के नाम पर चलाए जा रहे पाखंड का सख्त विरोध करते हैं। उनकी बहन
परित्यक्ता, चिन्ताग्रस्त, हिस्टीरिया की शिकार है जिसे अपने पति से वह तलाक
दिलाना चाहते हैं। शिरीष हिन्दू कोड बिल का समर्थन करते हैं ताकि पिता की संपत्ति
में बेटी को भी बेटे के बराबर हक मिले। शिरीष नारी सुरक्षा और अधिकारों का हिमायती
है। शिरीष मानवतावादी, स्पष्टवादी, विचारशील और अध्ययनशील व्यक्ति हैं। शिरीष
राजेन्द्र यादव का मानस-पुत्र है।
(iv) शिरीष संयुक्त परिवार का समर्थन
नहीं करते हैं। उनका मानना है कि आज की आर्थिक स्थिति में संयुक्त परिवार का चल
पाना अत्यंत कठिन है। आज संयुक्त परिवार के अंदर छोटे-छोटे परिवारों की कई इकाइयाँ
बन गई हैं। शिरीष भाई के अनुसार संयुक्त परिवार का शाब्दिक आदर्श जितना भी महान्
हो, उसका सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि परिवार का कोई भी सदस्य अपने व्यक्तित्व
का समुचित विकास नहीं कर पाता। लड़ाई-झगड़ा, खींचातान, बदला, ग्लानि सब मिलकर वातावरण ऐसा विषैला और दमघोंटू
बना रहता है कि आप साँस न ले सकें।
"सोने को आग में तपना पड़ता है तभी तो वह कुंदन की तरह निखरता है - सभी के जीवन में परीक्षा के क्षण आते हैं _ यह मेरी अग्नि-परीक्षा है। मुसीबतों से इतनी जल्दी घबरा जाना अच्छी आदत नहीं है ऐसे संकट के अवसरों पर अपने को साधे रखना मुझे सीखना होगा। यही तो महान बनने का सबसे पहला गुर है।"
(i) ये पंक्तियाँ कौन-सा पात्र सोचता है और क्यों?
(ii) प्रस्तुत पंक्तियों का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
(iii) विवाह से कौन-सी मुसीबतें पैदा हुई थीं?
(iv) उक्त पात्र इस समस्या का समाधान किस प्रकार करना चाहता है?
प्रश्न - सारा आकाश उपन्यास के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - उपन्यासकार राजेन्द्र यादव स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी साहित्य में विशिष्ट स्थान रखते हैं। इन्होंने एम०ए० हिन्दी की परीक्षा 1951 में आगरा विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। यादव जी का हिन्दी तथा उर्दू भाषा के अतिरिक्त अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मनी आदि भाषाओं पर भी जबरदस्त अधिकार था।
उन्होंने अपने साहित्य में मानवीय जीवन के तनावों और संघर्षों को पूरी संवेदनशीलता से जगह दी है।
दलित और स्त्री मुद्दों को साहित्य के केंद्र में लेकर आए।राजेन्द्र यादव की भाषा सहज, सुबोध, व्यावहारिक तथा मुहावरायुक्त है। उनकी भाषा आम-जन की भाषा है। उनकी भाषा में तद्भव, तत्सम, देशज, अरबी-फ़ारसी तथा अँग्रेजी शब्दावली की भरमार है।
प्रमुख रचनाएँ - उखड़े हुए लोग, शह और मात, एक इंच
मुस्कान, छोटे-छोटे ताजमहल, देवताओं की छाया में, जहाँ लक्ष्मी कैद है, एक दुनिया समानान्तर आदि।
’सारा आकाश’ राजेन्द्र यादव द्वारा रचित सामाजिक समस्या पर आधारित एक आत्मकथात्मक उपन्यास है। यह उपन्यास पहले ’प्रेत बोलते हैं’(1951) नाम से लिखा गया था लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया। सारा आकाश में प्रेत बोलते हैं कि भूमिका और अंत दोनों को बदल दिया गया। राधाकृष्ण प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में पाठकों की जिज्ञासा को देखते हुए प्रेत बोलते हैं के वे अंश भी दिए गए हैं जिन्हें सारा आकाश में बदला गया।
’सारा आकाश’ राजेन्द्र यादव द्वारा रचित सामाजिक समस्या पर आधारित एक आत्मकथात्मक उपन्यास है। यह उपन्यास पहले ’प्रेत बोलते हैं’(1951) नाम से लिखा गया था लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया। सारा आकाश में प्रेत बोलते हैं कि भूमिका और अंत दोनों को बदल दिया गया। राधाकृष्ण प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में पाठकों की जिज्ञासा को देखते हुए प्रेत बोलते हैं के वे अंश भी दिए गए हैं जिन्हें सारा आकाश में बदला गया।
पुस्तक की भूमिका में लेखक बताते हैं कि किशोर मन में गूँजती रामधारी सिंह 'दिनकर' की ये पंक्तियाँ उपन्यास के नामाकरण का स्रोत बनीं
सेनानी, करो प्रयाण अभय, भावी इतिहास तुम्हारा है
ये नखत अमा के बुझते हैं, सारा आकाश तुम्हारा है
राजेन्द्र यादव ने सारा आकाश के नामकरण में लिखा है, -इस कहानी के ब्याज, इन पंक्तियों को पुनः विद्रोही कवि को लौटा रहा हूँ कि आज हमें इनका अर्थ भी चाहिए।
राजेन्द्र यादव ने सारा आकाश के नामकरण में लिखा है, -इस कहानी के ब्याज, इन पंक्तियों को पुनः विद्रोही कवि को लौटा रहा हूँ कि आज हमें इनका अर्थ भी चाहिए।
सारा आकाश प्रमुखत: निम्नमध्यवर्गीय युवक के अस्तित्व के संघर्ष की कहानी है, आशाओं, महत्त्वाकांक्षाओं और आर्थिक-सामाजिक, सांस्कारिक सीमाओं के बीच चलते द्वंद्व, हारने-थकने और कोई रास्ता निकालने की बेचैनी की कहानी है।
सारा आकाश का शीर्षक प्रतीकात्मक है। लेखक के शब्दों में सारा आकाश की ट्रेजडी किसी समय या व्यक्ति विशेष की ट्रेजडी नहीं, खुद चुनाव न कर सकने की, दो अपरिचित व्यक्तियों को एक स्थिति में झोंककर भाग्य को सराहने या कोसने की ट्रेजडी है। संयुक्त परिवार में जब तक यह चुनाव नहीं है, सकरी और गंदी गलियों की खिड़कियों के पीछे लड़कियाँ सारा आकाश देखती रहेंगी, लड़के दफ़्तरों, पार्कों और सड़कों पर भटकते रहेंगे।
एकांत आसमान को गवाह बनाकर आप से लड़ते रहेंगे, दो नितान्त अकेलों की यह कहानी तब तक सच है, जब तक उनके बीच का समय रुक गया है।
प्रश्न - समर और प्रभा के बीच होने वाली बात का सार अपने शब्दों में लिखिए। प्रभा ने अपने विद्यार्थी जीवन के बारे में समर को क्या बताया?
उत्तर -उपन्यासकार राजेन्द्र यादव स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी साहित्य में विशिष्ट स्थान रखते हैं। इन्होंने एम०ए० हिन्दी की परीक्षा 1951 में आगरा विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। यादव जी का हिन्दी तथा उर्दू भाषा के अतिरिक्त अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मनी आदि भाषाओं पर भी जबरदस्त अधिकार था। राजेन्द्र यादव प्रेमचंद से काफी प्रभावित थे। प्रेमचंद द्वारा संपादित प्रमुख पत्र हंस का पुन: प्रकाशन 31 जुलाई 1986 को आरंभ किया।
उन्होंने अपने साहित्य में मानवीय जीवन के तनावों और संघर्षों को पूरी संवेदनशीलता से जगह दी है।
दलित और स्त्री मुद्दों को साहित्य के केंद्र में लेकर आए।राजेन्द्र यादव की भाषा सहज, सुबोध, व्यावहारिक तथा मुहावरायुक्त है। उनकी भाषा आम-जन की भाषा है। उनकी भाषा में तद्भव, तत्सम, देशज, अरबी-फ़ारसी तथा अँग्रेजी शब्दावली की भरमार है।
प्रमुख रचनाएँ - उखड़े हुए लोग, शह और मात, एक इंच
मुस्कान, छोटे-छोटे ताजमहल, देवताओं की छाया में, जहाँ लक्ष्मी कैद है, एक दुनिया समानान्तर आदि।
समर और प्रभा के बीच तब बातचीत शुरू होती है जब प्रभा को छत पर बाल धोने के लिए माँ और बाबू जी खरी-खोटी सुनाते हैं और उसके चरित्र पर लाँछ्न लगाते है। यह आरोप प्रभा के लिए अत्यंत कष्टदायक था। प्रभा रात के बारह बजे छत पर अकेली बैठी रोती है जिसे देखकर समर उससे रोने की वजह पूछता है और उनदोनों के बीच एक वर्ष से चल रही खामोशी का अंत होता है। उस रात दोनों एक-दूसरे से लिपटे रोते रहते हैं और सुबह हो जाती है। अगले दिन इधर-उधर भटकने के बाद रात को समर प्रभा के समक्ष प्रश्नों की झड़ी लगा देता है।
दाल में नमक तेज़ होने कारण बताते हुए प्रभा ने कहा कि जैसे ही वह सब्ज़ी छौंक कर थोड़ा इधर-उधर हुई भाभी ने मुट्ठी-भर नमक डाल दिया था। समर ने पूछा कि क्या उसने उन्हें डालते हुए देखा था। प्रभा ने कहा कि नहीं। मुन्नी बीबी जी ने डालते हुए देखा था और उन्होंने ही उसे बताया था। समर ने सोचा शायद मुन्नी ने इसीलिए उससे कहा था "भैया, भाभी से बोलना, उन्होंने कुछ भी नहीं किया..."
समर प्रभा से एक और प्रश्न पूछता है -"तुम पहले दिन हमसे क्यों नहीं बोली थीं? आने के दिन ही इतना बड़ा अपमान क्यों किया?"
प्रभा पुरानी बातों पर दोबारा सोचना नहीं चाहती थी लेकिन समर को जानने की बड़ी उत्सुकता थी। अत: प्रभा ने कहा कि पता नहीं समर को उस दिन अपना अपमान क्यों लगा क्योंकि प्रभा ने समर का कोई अपमान नहीं किया था। दरअसल, शादी की वजह से हफ्तों जागने की थकान थी, शरीर दर्द से टूट रहा था, तबीयत बहुत उदास थी। ज़रा-ज़रा सी देर के बाद घर की याद आती थी। फिर मुन्नी बीबी जी ने अपना किस्सा सुनाया तो मन और भी उदास हो गया। संयोग से उसी दिन खिड़की के ठीक सामने वाले घर में साँवल की बहू जल कर मर गई। बोलने का बिल्कुल ही मन नहीं कर रहा था, बस रोने की इच्छा हो रही थी। मुन्नी बीबी से पता चला कि तुम विवाह ही नहीं करना चाहते थे तो सारी हिम्मत समाप्त हो गई। ऐसे में क्या बात करती?
समर ने प्रभा से जानना चाहा कि भाभी और अम्मा जी उससे नाराज़ क्यों हैं। प्रभा ने कोई उत्तर नहीं दिया। फिर कुछ रुकर कहा कि शायद यह उनकी किस्मत में ही लिखा है। समर ने प्रभा को कसम दी कि वह जो भी जानना चाहता है उसे सच सच बता दे। प्रभा समर के उलझे बालों में अँगुलियाँ चलाती हुई बोली कि अम्मा-बाबूजी की नाराज़गी का कारण दहेज में कुछ न मिलना है। रुपया-पैसा, अच्छा ज़ेवर-कपड़ा कुछ भी तो नहीं ला पाई। ऐसी स्थिति में पढ़ी-लोखी होना भी एक दुर्गुण बन गया। मुन्नी बीबीजी ने खूब प्रचार किया कि भाभी भले दहेज कम लाई हैं पर देखने-सुनने में बड़ी बहू से लाख दरज़े अच्छी हैं। बस भाभी को नाराज़ करने के लिए ये बातें ही काफ़ी हैं।
समर को याद आया कि कल वह छत पर बैठी रो रही थी। उसने पूछा कि तुम कल रो क्यों रही थी? प्रभा ने बड़े कड़े स्वर में कहा - "मैं क्या, उस दिन कोई भी खूब रोता। इतनी बड़ी हो गई, अभी तक चरित्र पर किसी ने एक शब्द नहीं कहा। उस दिन जो सुना..."फिर उसने भावाविष्ट स्वर में कहा कि जिस दिन समर ने उसके चरित्र पर संदेह किया तो उस दिन वह ज़हर खा लेगी।
दाल में नमक तेज़ होने कारण बताते हुए प्रभा ने कहा कि जैसे ही वह सब्ज़ी छौंक कर थोड़ा इधर-उधर हुई भाभी ने मुट्ठी-भर नमक डाल दिया था। समर ने पूछा कि क्या उसने उन्हें डालते हुए देखा था। प्रभा ने कहा कि नहीं। मुन्नी बीबी जी ने डालते हुए देखा था और उन्होंने ही उसे बताया था। समर ने सोचा शायद मुन्नी ने इसीलिए उससे कहा था "भैया, भाभी से बोलना, उन्होंने कुछ भी नहीं किया..."
समर प्रभा से एक और प्रश्न पूछता है -"तुम पहले दिन हमसे क्यों नहीं बोली थीं? आने के दिन ही इतना बड़ा अपमान क्यों किया?"
प्रभा पुरानी बातों पर दोबारा सोचना नहीं चाहती थी लेकिन समर को जानने की बड़ी उत्सुकता थी। अत: प्रभा ने कहा कि पता नहीं समर को उस दिन अपना अपमान क्यों लगा क्योंकि प्रभा ने समर का कोई अपमान नहीं किया था। दरअसल, शादी की वजह से हफ्तों जागने की थकान थी, शरीर दर्द से टूट रहा था, तबीयत बहुत उदास थी। ज़रा-ज़रा सी देर के बाद घर की याद आती थी। फिर मुन्नी बीबी जी ने अपना किस्सा सुनाया तो मन और भी उदास हो गया। संयोग से उसी दिन खिड़की के ठीक सामने वाले घर में साँवल की बहू जल कर मर गई। बोलने का बिल्कुल ही मन नहीं कर रहा था, बस रोने की इच्छा हो रही थी। मुन्नी बीबी से पता चला कि तुम विवाह ही नहीं करना चाहते थे तो सारी हिम्मत समाप्त हो गई। ऐसे में क्या बात करती?
समर ने प्रभा से जानना चाहा कि भाभी और अम्मा जी उससे नाराज़ क्यों हैं। प्रभा ने कोई उत्तर नहीं दिया। फिर कुछ रुकर कहा कि शायद यह उनकी किस्मत में ही लिखा है। समर ने प्रभा को कसम दी कि वह जो भी जानना चाहता है उसे सच सच बता दे। प्रभा समर के उलझे बालों में अँगुलियाँ चलाती हुई बोली कि अम्मा-बाबूजी की नाराज़गी का कारण दहेज में कुछ न मिलना है। रुपया-पैसा, अच्छा ज़ेवर-कपड़ा कुछ भी तो नहीं ला पाई। ऐसी स्थिति में पढ़ी-लोखी होना भी एक दुर्गुण बन गया। मुन्नी बीबीजी ने खूब प्रचार किया कि भाभी भले दहेज कम लाई हैं पर देखने-सुनने में बड़ी बहू से लाख दरज़े अच्छी हैं। बस भाभी को नाराज़ करने के लिए ये बातें ही काफ़ी हैं।
समर को याद आया कि कल वह छत पर बैठी रो रही थी। उसने पूछा कि तुम कल रो क्यों रही थी? प्रभा ने बड़े कड़े स्वर में कहा - "मैं क्या, उस दिन कोई भी खूब रोता। इतनी बड़ी हो गई, अभी तक चरित्र पर किसी ने एक शब्द नहीं कहा। उस दिन जो सुना..."फिर उसने भावाविष्ट स्वर में कहा कि जिस दिन समर ने उसके चरित्र पर संदेह किया तो उस दिन वह ज़हर खा लेगी।
प्रभा ने समर को अपने विद्यार्थी जीवन की बहुत सारी बातें बताई। प्रभा ने कहा कि वह अपनी कक्षा की सबसे शैतान लड़की थी। वह और उसकी दोस्त सोचती थीं कि वे शादी नहीं करेंगी। गाँव-गाँव जाकर स्त्रियों को पढ़ाएँगी। सारे हिन्दुस्तान का पैदल "टूर" करेंगी। नए-नए गाँवों, शहरों में तरह-तरह के लोग मिलेंगे। गुंडे-बदमाशों या जंगली जानवरों से अपनी रक्षा के लिए हम लोग लाठी और छुरी चलाना सीखने की योजनाएँ बनातीं।
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि समर ने प्रभा से कई प्रश्न किए जिसका जवाब प्रभा ने दिल से दिया। समर को अपनी गलती का एहसास हो गया था और उनदोनों के बीच दाम्पत्य जीवन की मधुर शुरुआत हो चुकी थी।
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि समर ने प्रभा से कई प्रश्न किए जिसका जवाब प्रभा ने दिल से दिया। समर को अपनी गलती का एहसास हो गया था और उनदोनों के बीच दाम्पत्य जीवन की मधुर शुरुआत हो चुकी थी।
प्रश्न - समर के परिवार का परिचय देते हुए यह बताइए कि समर शादी क्यों नहीं करना चाहता है और शादी के बाद प्रभा के प्रति उसका व्यवहार कैसा था ? पठित अंकों के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - उपन्यासकार राजेन्द्र यादव स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी साहित्य में विशिष्ट स्थान रखते हैं। इन्होंने एम०ए० हिन्दी की परीक्षा 1951 में आगरा विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। यादव जी का हिन्दी तथा उर्दू भाषा के अतिरिक्त अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मनी आदि भाषाओं पर भी जबरदस्त अधिकार था। राजेन्द्र यादव प्रेमचंद से काफी प्रभावित थे। प्रेमचंद द्वारा संपादित प्रमुख पत्र हंस का पुन: प्रकाशन 31 जुलाई 1986 को आरंभ किया।
हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा राजेन्द्र यादव को उनके समग्र लेखन के लिये वर्ष 2003-04 का सर्वोच्च सम्मान (शलाका सम्मान) प्रदान किया गया था।
राजेन्द्र यादव विदेशी साहित्य के बड़े अध्येता थे और उन्होंने एन्टोन चेखव, तुर्कनेव, जॉन स्टेनबेड तथा अल्बर्ट कामस की रचनाओं का बेहतरीन अनुवाद किया।
राजेन्द्र यादव की भाषा सहज, सुबोध, व्यावहारिक तथा मुहावरायुक्त है। उनकी भाषा आम-जन की भाषा है। उनकी भाषा में तद्भव, तत्सम, देशज, अरबी-फ़ारसी तथा अँग्रेजी शब्दावली की भरमार है।
प्रमुख रचनाएँ - उखड़े हुए लोग, शह और मात, एक इंच मुस्कान
(उपन्यास)
छोटे-छोटे ताजमहल, देवताओं की छाया में, जहाँ लक्ष्मी
कैद है, एक दुनिया समानान्तर (कहानी) आदि।
सारा आकाश प्रमुखत: निम्नमध्यवर्गीय युवक समर के अस्तित्व के संघर्ष की कहानी है, आशाओं, महत्त्वाकांक्षाओं और आर्थिक-सामाजिक, सांस्कारिक सीमाओं के बीच चलते द्वंद्व, हारने-थकने और कोई रास्ता निकालने की बेचैनी की कहानी है।
सारा आकाश का शीर्षक प्रतीकात्मक है। लेखक के शब्दों में सारा आकाश की ट्रेजडी किसी समय या व्यक्ति विशेष की ट्रेजडी नहीं, खुद चुनाव न कर सकने की, दो अपरिचित व्यक्तियों को एक स्थिति में झोंककर भाग्य को सराहने या कोसने की ट्रेजडी है। संयुक्त परिवार में जब तक यह चुनाव नहीं है, सकरी और गंदी गलियों की खिड़कियों के पीछे लड़कियाँ सारा आकाश देखती रहेंगी, लड़के दफ़्तरों, पार्कों और सड़कों पर भटकते रहेंगे।
एकांत आसमान को गवाह बनाकर आप से लड़ते रहेंगे, दो नितान्त अकेलों की यह कहानी तब तक सच है, जब तक उनके बीच का समय रुक गया है।
सारा आकाश की कहानी एक रूढ़िवादी निम्नमध्यवर्गीय परिवार की कहानी है। जिसका नायक समर एक अव्यावहारिक आदर्शवादी है। समर महत्त्वाकांक्षी युवक है जो इंटर फाइनल कक्षा का छात्र है। वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का एक सक्रिय सदस्य है और नियमित रूप से शाखा में जाता है। वह भारत की प्राचीन परम्पराओं से बँधा है तथा सिर पर चोटी रखता है। उसके परिवार की दशा अत्यंत दयनीय है। उसके पिता ठाकुर साहब पच्चीस रुपए महीना पेंशन पाते हैं। समर का बड़ा भाई धीरज १०० रुपए मासिक वेतन पर सर्विस करता है। परिवार के अन्य सदस्यों में माता, भाभी, दो छोटे भाई अमर तथा कुँवर तथा छोटी बहन मुन्नी है, जो पति द्वारा निकाल दी जाने के कारण मायके में रहती है। दोनों छोटे भाई छोटी कक्षाओं में पढ़ते हैं।
समर 19-20 वर्ष का युवा छात्र है। उसका जन्म और लालन-पालन निम्नमध्यवर्गीय परिवार में हुआ है जिसमें नौ सदस्यों के संयुक्त भरण-पोषण बाबूजी के 25 रुपए की पेंशन तथा बड़े भाई धीरज के 100 रुपए के वेतन से किसी प्रकार चलता है। समर महत्त्वाकांक्षी युवक है तथा राष्ट्रीय स्वयं-सेवक संघ का सक्रिय सदस्य है।वह शाखा तथा बौद्धिकी में नियमित रूप से भाग लेता है। उसमें राष्ट्रीयता की भावना प्रबल है। वह एम०ए० करके प्रोफेसर बनना चाहता है। समर अध्ययनशील एवं चिंतनशील नवयुवक है।राणा प्रताप, शिवाजी, दयानन्द सरस्वती आदि उसके आदर्श पुरुष हैं। स्वामी दयानंद और विवेकानंद में उसकी दृढ़ आस्था है और दोनों ही महापुरुष अविवाहित थे। समर मानता था कि "नारी अंधकार है, नारी मोह है, नारी माया है। नारी देवत्व की ओर उठते मनुष्य को बाँधकर राक्षसत्व के गहरे अंधे कुओं में डाल देती है। नारी पुरुष की सबसे बड़ी कमज़ोती है।" किन्तु पारिवारिक दबाव के सामने उसे झुकना पड़ता है और नहीं चाहते हुए भी अपनी इच्छा के विरुद्ध उसे प्रभा से विवाह करना पड़ता है।
विवाह के उपरांत समर यह निर्णय करता है कि वह प्रभा से किसी भी प्रकार कोई संबंध नहीं रखेगा। समर दृढ़-निश्चय करता है कि वह ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन करेगा और प्रभा से बात नहीं करूँगा अगर बोलना ही पड़ा तो मतलब की एक-दो बातें ही करूँगा। समर का व्यवहार प्रभा के प्रति अत्यंत रूखा है, वह बराबर उस पर व्यंग्य बाण चलाता है और उसकी उपेक्षा करता है। यहाँ तक कि एक बार समर गुस्से में आकर प्रभा को ज़ोरदार तरीके से तमाचा भी जड़ देता है।
निष्कर्ष में हम कह सकते हैं कि समर का मूल स्वभाव क्रोधी और चिड़चिड़ापन लिए हुए नहीं है लेकिन अपनी इच्छा के विरुद्ध परिवारवालों के दबाव में आकर विवाह तो कर लेता है लेकिन प्रभा के प्रति उसका व्यवहार असंवेदनशील है जिसके कारण वह प्रभा को और खुद को भी मानसिक पीड़ा पहुँचाता है।
Sir..... Naya answer aap kab denge? Please jaldi kariyega
जवाब देंहटाएंSir..... Naya answer aap kab denge? Please jaldi kariyega
जवाब देंहटाएंsir pls thora aur questions ka answer dijiye na!pls!pls!
जवाब देंहटाएंIs upanyas mein babuji munni ki shadi ke lite kitne rupaye ka karz lete hai ?
जवाब देंहटाएंSamar ne apni choti kyo karva?
जवाब देंहटाएंSamar ne apni choti kyo katwaya?
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