अश्विनी कुमार
(विभागाध्यक्ष - हिन्दी - जेम्स एकेडेमिया स्कूल)
कल दो छात्र और एक छात्रा ने अपनी कक्षा में शैतानी शुरू की। वहां मौजूद शिक्षिका के लिए कक्षा संभालना मुश्किल हो रहा था। कक्षा अंग्रेज़ी विषय की थी। शिक्षिका पढ़ा रही थी और बच्चे लगातार हँस रहे थे। आखिर, मुझसे रहा ना गया। मैं कक्षा के अगल - बगल घूमना शुरू किया ताकि वे शैतानी करना बंद कर सके। अचानक शिक्षिका कक्षा से निकल आई और मुझसे निवेदन के स्वर में बोली - देखिए पढ़ाने नहीं दे रहे हैं। मैंने कहा कि आप कक्षा जारी रखिए। देखता हूँ।
मैंने उन तीनों को बाहर बुलाया। बिना डरे तीनों बाहर आए। मैंने मित्रवत व्यवहार करते हुए पूछा कि - बात क्या है।
जवाब था - सर बोर हो रहा हूँ। मैम से कहा आज कोई कहानी सुनाइए तो वे मान ही नहीं रही। सिर्फ पाठ को खुद पढ़ती जा रही हैं और व्याख्या करती जा रही हैं।
मैंने सोचा गलती पूरी तरह बच्चों की नहीं है। दरअसल शिक्षक प्रायः अपने मूड को कक्षा में हावी करना चाहते हैं जबकि जरूरी यह है कि हम बच्चों के मूड को भी कभी - कभी परखें। अन्यथा बच्चे आपका सम्मान करना छोड़ देंगे। और मेरे हिसाब से अच्छा शिक्षण तो वह है जब हम कहानियों में भी चालाकी से पाठ्यक्रम शामिल कर लें।
जवाब था - सर बोर हो रहा हूँ। मैम से कहा आज कोई कहानी सुनाइए तो वे मान ही नहीं रही। सिर्फ पाठ को खुद पढ़ती जा रही हैं और व्याख्या करती जा रही हैं।
मैंने सोचा गलती पूरी तरह बच्चों की नहीं है। दरअसल शिक्षक प्रायः अपने मूड को कक्षा में हावी करना चाहते हैं जबकि जरूरी यह है कि हम बच्चों के मूड को भी कभी - कभी परखें। अन्यथा बच्चे आपका सम्मान करना छोड़ देंगे। और मेरे हिसाब से अच्छा शिक्षण तो वह है जब हम कहानियों में भी चालाकी से पाठ्यक्रम शामिल कर लें।
कुछ महीने पहले की बात है। घटना कक्षा नौ की है। एक छात्र हमेशा मेरी कक्षा में देर से आता। शुरू में मुझे लगा कि शायद मेरी कक्षा उसे पसंद नहीं। मैं प्रायः नए - नए Topic के साथ तैयार हो कर कक्षा में आता ताकि वह छात्र रूचिकर विषय पर बात करे और समय पर आए। मेरी हिंदी कक्षा को Enjoy कर सके। बावजूद इसके देरी से आने की आदत उसने नहीं छोड़ी। मुझे लगा निश्चित रूप से कुछ गड़बड़ है। मैंने पता करने की कोशिश की। मेरा अनुमान सही था कि बालक प्रेम जाल में फँसा हुआ है। वहाँ से मुक्त करना मेरे लिए तो संभव नहीं है लेकिन कक्षा समय पर आए - यह मेरे लिए जरूरी था। धीरे-धीरे मैंने उससे दोस्ती करनी शुरू की। खैर, इन दिनों वह मुझे शिक्षक और दोस्त दोनों मानता है और मेरी कक्षा में समय पर भी पहुँचता है।
मुझे बार - बार लगता है कि अब समय ऐसा आ गया है कि आपको बच्चों का दोस्त पहले बनना होगा। हाँ, मर्यादा जरूर बचानी होगी। डांट डपट कर, आतंक फैला कर शिक्षा का आदान - प्रदान अब संभव नहीं है।
मुझे बार - बार लगता है कि अब समय ऐसा आ गया है कि आपको बच्चों का दोस्त पहले बनना होगा। हाँ, मर्यादा जरूर बचानी होगी। डांट डपट कर, आतंक फैला कर शिक्षा का आदान - प्रदान अब संभव नहीं है।
मुझे यह लिंक बहुत अच्छा लगा। मेरी हिंदी टीचर Mrs. Puspanjali Chaterjee ने मुझे इस लिंक के बारे में जानकारी दी। मैं उन्हें इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद कहती हूँ। मेरी अध्यापिका के नोट्स के साथ साथ इस लिंक के मदद से मैं ICSE में अवश्य ही अच्छे अंक प्राप्त करूंगी। मैं अपनी अध्यापिका की आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद,
सौमिता बासु।