सोमवार, 26 जून 2017

पिता

मैंने अपने एक विद्‌यार्थी को निशांत की कविता 'पिता' पढ़ने को दी क्योंकि उसे विद्‌यालय की काव्य आवृत्ति प्रतियोगिता में हिस्सा लेना है। मैं उस विद्‌यार्थी के साथ स्कूल की लाइब्रेरी में बैठा उसी कविता को पढ़ रहा था और वहीं मेरी एक छात्रा पुस्तक-समीक्षा के लिए पुस्तक पढ़ रही थी। उसने मुझसे पूछा, "सर आप क्या पढ़ रहे हैं?" मैंने उसे कविता के बारे में बताया तो उसने ज़िद किया कि मैं उस कविता की आवृत्ति करूँ। मैंने कविता पढ़ी। कविता समाप्त करने के उपरांत जब मेरी नज़र उस छात्रा पर पड़ी तो मैंने पाया कि उसकी आँखें भर आई हैं। उसने बताया कि उसके पिता नहीं हैं...मैंने उसे सांत्वना देकर कक्षा में भेज दिया। उसके जाने के बाद मैंने महसूस किया कि ईमानदारी से लिखी गई एक अच्छी कविता सच में आपको अंदर तक छू जाती है...धन्यवाद कवि निशांत।





            कविता : पिता कुछ कविताएँ, कवि : निशांत , आवृत्ति : सौमित्र आनंद

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