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एकांकी संचय



विष्णु प्रभाकर


(जन्म: 1912 - मृत्यु: 2009)

विष्णु प्रभाकर हिन्दी के सुप्रसिद्‌ध लेखक के रूप में विख्यात हुए। उनका जन्म उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के गांव मीरापुर में हुआ था। उनके पिता दुर्गा प्रसाद धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे और उनकी माता महादेवी पढ़ी-लिखी महिला थीं जिन्होंने अपने समय में पर्दा प्रथा का विरोध किया था। उनकी पत्नी का नाम सुशीला था। विष्णु प्रभाकर की आरंभिक शिक्षा मीरापुर में हुई। बाद में वे अपने मामा के घर हिसार चले गये जो तब पंजाब प्रांत का हिस्सा था। घर की माली हालत ठीक नहीं होने के चलते वे आगे की पढ़ाई ठीक से नहीं कर पाए और गृहस्थी चलाने के लिए उन्हें सरकारी नौकरी करनी पड़ी। चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के तौर पर काम करते समय उन्हें प्रतिमाह १८ रुपये मिलते थे, लेकिन मेधावी और लगनशील विष्णु ने पढाई जारी रखी और हिन्दी में प्रभाकर व हिन्दी भूषण की उपाधि के साथ ही संस्कृत में प्रज्ञा और अंग्रेजी में बी.ए की डिग्री प्राप्त की। विष्णु प्रभाकर पर महात्मा गाँधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्‌देश्य बना लिया, जो आजादी के लिए सतत संघर्षरत रही। अपने दौर के लेखकों में वे प्रेमचंद, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे, लेकिन रचना के क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान रही।
विष्णु प्रभाकर ने पहला नाटक लिखा- हत्या के बाद  और लेखन को ही अपनी जीविका बना लिया। आजादी के बाद वे नई दिल्ली आ गये और सितम्बर १९५५ में आकाशवाणी में नाट्य निर्देशक के तौर पर नियुक्त हो गये जहाँ उन्होंने १९५७ तक काम किया।  
'अद्‌र्धनारीश्वर' पर उन्हें बेशक साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी प्राप्त हुआ, लेकिन 'आवारा मसीहा' ने साहित्य में उनकी एक अलग ही पहचान बना दी।
प्रभाकर जी के साहित्य में मानवतावादी दृष्टिकोण देखने को मिलता है।

प्रमुख रचनाएँ
सत्ता के आर-पार, हत्या के बाद, नवप्रभात, डॉक्टर, प्रकाश और परछाइयाँ, बारह एकांकी, अब और नही, टूट्ते परिवेश, गान्धार की भिक्षुणी, और अशोक आदि।


संस्कार और भावना

विष्णु प्रभाकर द्‌वारा रचित "संस्कार और भावना" एकांकी में परम्परागत संस्कार और मानवीय भावनाओं के बीच के द्‌वंद्‌व को अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। एकांकीकार ने प्रस्तुत एकांकी के माध्यम से मानव मन का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है। एक भारतीय मध्यमवर्गीय परिवार की माँ अपने पुराने संस्कारों से बद्‌ध है। यह परिवार परम्पराओं से चली आ रही रूढ़िवादी संस्कारों को ढो रही है और उसकी रक्षा करना अपना परम कर्त्तव्य समझ रही है। इसी कारण माँ अपने बड़े बेटे अविनाश के अंतर्जातीय विवाह को स्वीकार नहीं करती है। अविनाश ने एक बंगाली लड़की से प्रेम-विवाह किया और अपनी पत्नी के साथ घर से अलग रहने लगा है। माँ अपने छोटे बेटे अतुल और उसकी पत्नी उमा के साथ रहती है पर बड़े बेटे से अलग रहना उसके मन को कष्ट पहुँचाता है।
जब माँ को अविनाश की बीमारी, उसकी पत्नी द्‌वारा की गई सेवा और उसकी जानलेवा बीमारी की सूचना मिलती है तब  पुत्र-प्रेम की मानवीय भावना का प्रबल प्रवाह  रूढ़िग्रस्त प्राचीन संस्कारों के जर्जर होते बाँध को तोड़ देता है। माँ अपने बेटे और बहू को अपनाने का निश्चय करती है।

कठिन शब्दार्थ

संक्रान्ति काल - एक अवस्था से निकलकर दूसरी अवस्था में पहुँचने का का।
मिसरानी - ब्राह्‌मण स्त्री जो आजीविका के लिए दूसरों के लिए खाना पकाती है।
रक्तिम आभा - लाल चमक
बहुतेरा - बहुत अधिक
हैजा - एक रोग का नाम
विद्रूप - व्यंग्य
कपोलों पर - गालों पर
साक्षी - गवाह
पचड़े - बेकार की बातें
मोहिनी सी छाह जाती है - जैसे मन को मोह लेना
डाकिन - चुड़ैल
सौम्यता - शीतलता
विजातीय - दूसरी जाति की
फौलाद - असली लोहा, मज़बूत शरीर वाला 
अवतरणों पर आधारित प्रश्नोत्तर
(1)
बड़ी-बड़ी काली आँखें, उनमें शैशव की भोली मुसकराहट, अनजान में ही लज्जा हुए कपोलों पर रहने वाली हँसी...
प्रश्न
(i) इन शब्दों में किससे द्‌वारा, किसके रूप की प्रशंसा, किन शब्दों में की गई है ? उत्तर अपने शब्दों में लिखिए।
(ii) इन शब्दों को सुनकर माँ क्यों चौंक पड़ी ? उनके मन में कौन सा प्रश्न उठा ?
(iii) क्या उमा ने अविनाश की बहू को देखा था ? यदि हाँ, तो वह उसके घर कब गई थी और क्यों ?
(iv) माँ ने अविनाश की बहू को क्यों नहीं अपनाया ? समझाकर लिखिए।
उत्तर
(i) इन शब्दों में उमा के द्‌वारा अविनाश की पत्नी की प्रशंसा की गई है। उमा अपनी सास से कहती है कि अविनाश की पत्नी बहुत भोली और प्यारी है, जो उसे एक बार देख ले तो उसका मन बार-बार उसे देखने के लिए मचल उठेगा। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी और काली हैं जिनमें अबोध बच्चे का भोलापन छिपा है। उसके गाल पर सदैव लज्जा की लालिमा का आवरण रहता है।
(ii) उमा ने जब अविनाश की पत्नी की विशेषताओं का उल्लेख किया तो माँ (उमा की सास) चौंक पड़ी क्योंकि उसे इस बात का आभास नहीं था कि उमा अविनाश की पत्नी से मिली है क्योंकि अविनाश अपनी पत्नी के साथ अलग रहता था। माँ के प्रश्न में यह प्रश्न उठा कि उमा कब अविनाश की पत्नी से मिली। उन्होंने उमा से प्रश्न किया - "तूने क्या अविनाश की बहू को देखा है ?"
(iii) हाँ, उमा ने अविनाश की पत्नी को देखा था। एक दिन जब माँ अविनाश की पत्नी से बहुत गुस्सा होकर दुखी हो रही थी तब उमा माँ को
बिना बताए अविनाश की पत्नी से मिलने उसके घर चली गई थी। दरअसल उमा लड़ने गई थी क्योंकि उनकी वजह से अविनाश ने अपनी माँ से अलग होने का फैसला लिया था जिसके कारण माँ को बहुत दुख हुआ था और वह अपने बड़े बेटे से मिलने के लिए तड़पती रहती हैं।
(iv) माँ एक हिन्दू वृद्‌धा है जो जाति-पाँति, ऊँच-नीच और छुआछूत में विश्वास रखती हैं। वे हिन्दू समाज की रूढ़िवादी संस्कारों से ग्रस्त हैं। वे संस्कारों की दास हैं। उसके दो पुत्र हैं -बड़ा अविनाश और छोटा अतुल। अविनाश ने माँ की इच्छा के विरुद्‌ध जाकर एक बंगाली लड़की से प्रेम-विवाह कर लिया परन्तु माँ ने इस विवाह को अपनी स्वीकृति प्रदान नहीं की और विजातीय बहू को अपनाया भी नहीं। इसका परिणाम यह हुआ कि अविनाश अपनी पत्नी के साथ अलग रहने लगा। माँ इस बात से अत्यंत आहत थी।
(2)
अभी चलो माँ, पर चलने से पहले एक बात सोच लो। यदि तुम उस नीच कुल की विजातीय भाभी को इस घर में नहीं ला सकीं तो जाने से कुछ लाभ नहीं होगा।
प्रश्न
(i) "अभी चलो माँ" - इस वाक्यांश को किसने, किससे और किस अवसर पर कहा ?
(ii) अतुल का चरित्र-चित्रण कीजिए।
(iii) अतुल और उमा माँ के किस निर्णय से प्रसन्न हैं ? उनकी माँ के विचारों में परिवर्तन का क्या कारण था ? समझाकर लिखिए।
(iv) अंतर्जातीय विवाह का देश की एकता और अखंडता में क्या महत्त्व है ? संक्षेप में अपने विचार लिखिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त वाक्यांश अतुल ने अपनी माँ को उस अवसर पर कहा जब माँ को मिसरानी से पता चला कि अविनाश तो हैजा से बच गया लेकिन अब वहीं बीमारी अविनाश की पत्नी को हो गया है और वह मरणासन्न है तब माँ अतुल से कहती है वह उसे अविनाश के पास ले चले।
(ii) अतुल एकांकी का प्रमुख पुरुष पात्र है। वह माँ का छोटा बेटा, अविनाश का अनुज और उमा का पति है। वह प्राचीन संस्कारों को मानते हुए आधुनिकता में यकीन रखने वाला एक प्रगतिशील नवयुवक है। वह माँ का आज्ञाकारी पुत्र होते हुए भी माँ की गलत बातों का विरोध भी करता है। जब माँ अविनाश की पत्नी बीमार पड़ जाती है तब माँ अपने बड़े लड़के के घर जाना चाहती है। उस वक्त अतुल स्पष्ट शब्दों में माँ से कहता है - "यदि तुम उस नीच कुल की विजातीय भाभी को इस घर में नहीं ला सकीं तो जाने से कुछ लाभ नहीं होगा।" अतुल संयुक्त परिवार में विश्वास रखता है। उसमें भ्रातृत्व की भावना है। वह अपने बड़े भाई का सम्मान करता है।
(iii) जब माँ को अविनाश की पत्नी की बीमारी की सूचना मिलती है तब उसका हृदय मातृत्व की भावना से भर उठता है। उसे इस बात का आभास है कि यदि बहू को कुछ हो गया तो अविनाश नहीं बचेगा। माँ को पता है कि अविनाश को बचाने की शक्ति केवल उसी में है। इसलिए वह प्राचीन संस्कारों के बाँध को तोडकर अपने बेटे के पास जाना चाहती है। अतुल माँ से कहता है कि इस स्थिति में उन्हें अपनी विजातीय बहू को भी अपनाना पड़ेगा, माँ कहती है - " जानती हूँ अतुल। इसलिए तो जा रही हूँ।" यह सुनकर अतुल और उमा प्रसन्न हो जाते हैं।
(iv) भारतवर्ष में अंतर्जातीय विवाह का चलन कोई नई बात नहीं है। सम्राट अकबर से लेकर इंदिरा गांधी तक, सुनील दत्त से लेकर शाहरुख खान 
तक देश में हज़ारों ऐसे उदाहरण देखे जा सकते हैं जहां विभिन्न समुदाय के लोग परस्पर विवाह के बंधन में बँधे हैं। भारत में विभिन्न धर्म और जाति के लोग रहते हैं। उन सभी के धार्मिक रीति-रिवाज़, रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार भिन्न हैं। यदि इन विभिन्न धर्म और जाति के लोगों के बीच वैवाहिक संबंध स्थापित हों तो उनकी सभ्यता और संस्कृति का मेलजोल बढ़ पाएगा जिससे देश की एकता और अखंडता मजबूत होगी।



(अंतर्जातीय विवाह पर आधारित ’सत्यमेव जयते’ के एक एपिसोड का  लोकप्रिय गीत)















बहू की विदा : प्रश्नोत्तर-२ 

अब भी आँखें नहीं खुली? जो व्यवहार अपनी बेटी के लिए तुम दूसरों से चाहते हो वही दूसरे की बेटी को भी दो। जब तक बहू और बेटी को एक-सा न समझोगे, न तुम्हें सुख मिलेगा और न शांति!


प्रश्न

(i) वक्ता और श्रोता में क्या संबंध है? वक्ता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
(ii) आँखें खुलना मुहावरे का क्या अर्थ है? इसका प्रयोग किसके लिए और क्यों किया गया है?
(iii) श्रोता का चरित्र-चित्रण कीजिए।
(iv) प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।


उत्तर

(i) वक्ता का नाम राजेश्वरी है और श्रोता का नाम जीवनलाल है। दोनों के बीच पति-पत्नी का संबंध है। राजेश्वरी छियालीस वर्षीया स्त्री है। उसके पुत्र का नाम रमेश और पुत्री का नाम गौरी है। राजेश्वरी बहू और बेटी दोनों के प्रति समान आदर भाव रखने वाली उदार, धैर्यवान ममता की मूरत है। वह अपनी बेटी गौरी को जितना मानती है उतना ही अपनी बहू कमला को भी।

(ii) आँखें खुलनामुहावरे का अर्थ है – भ्रम दूर होना। इसका प्रयोग राजेश्वरी ने अपने पति जीवनलाल के लिए किया है। इसका कारण यह था कि रमेश ने आकर बताया कि उसकी बहन गौरी को उसके ससुराल वालों ने विदा नहीं किया। उनका कहना है कि दहेज पूरा नहीं दिया गया है। इतना सुनकर जीवनलाल क्रोधित हो जाते हैं, तब राजेश्वरी उन्हें उनकी गलती का एहसास कराने के लिए उक्त कथन कहती है।

(iii) जीवनलाल एक धनी व्यापारी हैं जिनकी उम्र पचास वर्ष है। उनके पुत्र रमेश की नई-नई शादी कमला नाम की एक रूपवती लड़की से हुई है। जीवनलाल संकुचित सोच के ज़िद्‌दी, अभिमानी, लालची एवं कठोर स्वभाव के व्यक्ति हैं। वे बहू और बेटी में अंतर मानते हैं। वे दहेज-लोभी हैं इसलिए कमला के भाई प्रमोद से बहू की विदाई के लिए पाँच हज़ार रुपयों की माँग करते हैं। वे अहंकारी हैं। उन्हें अपनी संपत्ति पर भी घमंड है।

(iv) बहू की विदा एकांकी का शीर्षक सटीक एवं सार्थक है क्योंकि एकांकी की कथावस्तु बहू की विदाई को केंद्र में रखकर ही आगे बढ़ती है। जीवनलाल अपनी बहू कमला की विदाई नहीं करते हैं क्योंकि कमला के ससुराल वालों ने पूरा दहेज नहीं दिया था। जीवनलाल अब कमला के भाई प्रमोद से पाँच हज़ार रुपए की माँग करते हैं जिसे पूरा करने में वह असमर्थ है। दहेज भारतीय समाज की वह कुरीति है जिसने समाज को अमानवीय बना दिया है। वहीं दूसरी ओर जब जीवनलाल की नवविवाहिता पुत्री गौरी भी दहेज की वजह से विदा नहीं हो पाती है तब जीवनलाल की आँखें खुलती हैं और वह बहू को विदा कर देते हैं। अत: शीर्षक संक्षिप्त, रोचक एवं कथा के अनुरूप है।

























शब्दार्थ

विख्यात - प्रसिद्‌ध
बंधुत्व - भाईचारा
अधीनता - पराधीनता
दंभ - अहंकार
श्रीगणेश - आरंभ
कलंक - दोष
धमनी - नस, शिरा
उपहासजनक - हँसने योग्य
धृष्टता - अनुचित साहस
उद्‌दण्डता - अभद्र व्यवहार
निरीक्षण - देख-रेख
विध्वंश - विनाश
विजय दुंदुभि - जीत का नगाड़ा
निष्प्राण - प्राण रहित
पश्चाताप - पछतावा
पृथक - अलग

संदर्भ

महारावल बाप्पा
(734 - 753 ई०)



बप्पा रावल (शासनकाल 734-753) सिसोदिया राजवंश मेवाड़ का प्रतापी शासक था। उदयपुर (मेवाड़) रियासत की स्थापना आठवीं शताब्दी में सिसोदिया राजपूतों ने की थी। बप्पा रावल को 'कालभोज' भी कहा जाता था। जनता ने बप्पा रावल के प्रजा-संरक्षण, देशरक्षण आदि कामों से प्रभावित होकर ही इसे 'बापा' पदवी से विभूषित किया था।
कर्नल टॉड के अनुसार सन् 728 ई. में बप्पा रावल ने चित्तौड़गढ़ को राजपूताने पर राज्य करने वाले मौर्य वंश के अंतिम शासक मान मौर्य से छीनकर गुहिल वंश राज्य की स्थापना की।
उन्होंने शासक बनने के बाद अपने वंश का नाम ग्रहण नहीं किया, बल्कि मेवाड़ वंश के नाम से नया राजवंश चलाया था और चित्तौड़ को अपनी राजधानी बनाया।
यह अनुमान है कि बप्पा रावल की विशेष प्रसिद्धि अरबों से सफल युद्ध करने के कारण हुई। सन् 712 ई. में बप्पा रावल ने मुहम्मद बिन क़ासिम से सिंधु को जीता। 
बप्पा रावल एक न्यायप्रिय शासक थे। वे राज्य को अपना नहीं मानते थे, बल्कि शिवजी के एक रूप ‘एकलिंग जी’ को ही उसका असली शासक मानते थे और स्वयं उनके प्रतिनिधि के रूप में शासन चलाते थे। लगभग 20 वर्ष तक शासन करने के बाद उन्होंने वैराग्य ले लिया और अपने पुत्र को राज्य देकर शिव की उपासना में लग गये।
बप्पा रावल का देहान्त नागदा में हुआ था। नागदा में उसकी समाधि स्थित है

महाराणा हमीर सिंह
(1326 - 1364 ई०)


हमीर ने अपनी शौर्य, पराक्रम एवं कूटनीति से मेवाड राज्य को तुगलक से छीन कर उसकी खोई प्रतिष्ठा पुनः स्थापित की और अपना नाम अमर किया महाराणा की उपाधि धारण किया। इसी समय से ही मेवाड नरेश महाराणा उपाधि धारण करते आ रहे हैं। इन्होंने राजस्थान के चित्तौड़गढ़ ज़िले में स्थित चित्तौड़गढ़ में अन्नपूर्णा माता के मन्दिर का निर्माण भी करवाया था।






















































 बड़प्पन बाहर की वस्तु नहीं – बड़प्पन तो मन का होना चाहिए। और फिर बेटा घृणा को घृणा से नहीं मिटाया जा सकता।

१. इस कथन का वक्ता और श्रोता कौन है? वक्ता क्या चाहता है?

२. बड़प्पन मन का होता है – कथन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

३. घृणा को घृणा से नहीं मिटाया जा सकता – यहाँ किस तरह की घृणा की बात की गई है?

४. वक्ता का चरित्र-चित्रण कीजिए।

संभावित उत्तर

 १. इस कथन के वक्ता दादा मूलराज जी और श्रोता उसका मँझला बेटा कर्मचंद है। दादा जी चाहते हैं कि परिवार के सभी सदस्य एकसाथ मिलजुल कर रहें। किसी के भी प्रति किसी के मन में घृणा अथवा क्लेश न रहे।

 २. एकांकी में दादा मूलराज जी ने समझाया है कि बड़प्पन बाहरी वस्तुओं से नहीं, मन से होता है। आप कितने संपन्न हैं या कितने शिक्षित हैं, आपकी महानता इससे परिलक्षित नहीं होती है। महानता तो आपके अच्छे कर्मों से प्रदर्शित होती है। अत: स्नेहपूर्ण व्यवहार करने से बेला के मन में परिवर्तन दिखता है और परिवार के सभी सदस्यों से मिलजुल कर रहना सीख लेती है। 

 ३. यहाँ उस घृणा की बात की गई है जो बेला के स्वभाव के कारण परिवार के सदस्यों के व्यवहार से उत्पन्न हुई है। परेश की बहू पढ़ी-लिखी है। उसका बचपन संपन्न परिवार में गुजरा है। उसे वहाँ किसी भी तरह की कमी नहीं थी। संयुक्त परिवार में आने के बाद उसे लोगों का व्यवहार पसंद नहीं आता है। इसका कारण था कि ननद इंदु एवं अन्य भाभियाँ छोटी-छोटी बातों पर उसका उपहास करती रहती थीं। बेला भी अपने मायके को उनसे श्रेष्ठ समझकर वहाँ की बातें करती रहती थी। इस व्यवहार के कारण बेला तथा परिवार के दूसरे सदस्यों के बीच घृणा की भावना बढ़ती जा रही थी।

 ४. वक्ता दादा मूलराज संयुक्त परिवार के पक्षधर हैं। ७२ वर्ष के होने के बावजूद भी उनका शरीर अभी तक नहीं झुका है। उनके अनुसार संयुक्त परिवार महान वट के पेड़ की भाँति है। परिवार की मुखिया होने के नाते इस परिवार को एकजुट बनाए रखना चाहते हैं। दादा का व्यक्तित्व कठोर अनुशासन को अपने भीतर समेटे हुए है। दादा अत्यंत समझदार हैं। वे बेला को डाँटने-फटकारने की बजाए घर के दूसरे सदस्यों के व्यवहार में परिवर्तन करवाते हैं।

44 टिप्‍पणियां:

  1. नए पाठ्यक्रम पर किया गया सौमित्र जी का यह प्रयास अत्यंय सराहनीय है...बहुत-बहुत बधाई हो।

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    1. नए पाठ्यक्रम पर किया गया सौमित्र जी का यह प्रयास अत्यंय सराहनीय है...बहुत-बहुत बधाई हो।

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  3. आपके प्रयास व सबके साथ अपना खजाना बाँटने के लिए धन्यवाद शब्द बहुत छोटा है ..!!
    "दीपदान" व "महाभारत की एक सांझ" के लिए आतुरता के साथ प्रतीक्षारत हूँ ..!!

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  4. Your efforts are worth high praise.
    DEEPDAN chapter par apke gyan ka intazar hain.

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  5. अविनाश का चरित्र चित्रण

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    1. अविनाश प्रस्तुत एकांकी का एक अहम पात्र है जो एकांकी में सशरीर उपस्थित नहीं है लेकिन कथावस्तु के गठन में उसकी अहम भूमिका है। अविनाश बड़ा पुत्र है जिसने एक बंगाली लड़की से अंतर्जातीय विवाह किया है। माँ पुराने संस्कारों वाली एक धार्मिक स्त्री है जिसने अपने पुत्र अविनाश को घर से निकाल दिया है लेकिन अपने मन से बाहर नहीं कर पाई है। अविनाश खुले विचारों वाला एक आधुनिक युग का नवयुवक है। वह सड़ी-गली सामाजिक मान्यताओं को मानने से इंकार करता है। वह तर्क को महत्त्व देता है। उसका कहना है - "माँ, संतान का पालन माँ-बाप का नैतिक कर्त्तव्य है। वे किसी पर एहसान नहीं करते, केवल राष्ट्र का ऋण चुकाते हैं।..." उसमें अत्यंत आत्म-सम्मान है। उसके पास पैसा नहीं है किन्तु वह किसी के सामने अपने हाथ नहीं फैलाता है, चाहे उसका अपना छोटा भाई अतुल ही क्यों न हो। अविनाश का हृदय बहुत मज़बूत है, वह किसी के सामने झुकना नहीं चाहता।

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  6. आप सबका धन्यवाद कि आपलोगों ने मेरे इस प्रयास की सराहना की। मैं आप सबसे देरी के लिए माफ़ी चाहूँगा और बहुत जल्दी ही आप सबके निवेदन को ध्यान में रखकर सामग्री अपलोड करूँगा।

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  7. सिर्फ़ एक ही एकांकी?!
    मुझे मातृभूमि का मान के बारे में चाहिए......

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  9. Can you please provide notes for bahu ki vidha? Thank you so much

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  10. Thnx for the rest chapters.
    Can you prepare solved model papers consisting questions and answers.
    I will be your thankful.

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  12. मित्रों से अनुरोध है कि वे भी जुड़े और अपने विचार साझा करें

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  13. I am having a question its from sanskar aur bhavna the questuon is
    'Rasht ka rin' explain.

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  14. उत्तर देर से दे रहा हूँ इसके लिए माफ़ी चाहूँगा। मेरे अनुसार राष्ट्र का ऋण कहने के पीछे अविनाश का अभिप्राय यह रहा होगा कि देश में पैदा होने वाला हर शिशु राष्ट्र की सम्पत्ति होती है क्योंकि वह भावी राष्ट्र के निर्माण में अपनी अहम भूमिका का निर्वाहन करता है, अत: माता-पिता अपनी संतान का लालन-पोषण कर जननी जन्मभूमि पर अपने जन्म लेने का ऋण चुकाते हैं।

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    1. am
      चेतन मन का अर्थ आपके तार्किक और संवेदना्त्मक ज्ञान से है जबकि अचेतन का तात्पर्य आपके भावनात्मक ज्ञान से संबंधित होता है। हम जब चेतन अवस्था में होते हैं तब मन की भावनाओं की अभिव्यक्ति पर नियंत्रण रखने की कोशिश करते हैं लेकिन अचेतन अवस्था में वह नियंत्रण कायम नहीं रहता है। माँ ने अविनाश और अपनी बंगाली बहू से रिश्ता तोड़ लिया है लेकिन अतुल अपने बड़े भाई से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है, इसलिए वह अपने भाई से अलग नहीं हो पाता है।

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  16. नमस्ते सर जी,
    चेतन मन से अचेतन मन अधिक सक्तिशाली होता है अभिप्राय स्पष्ट करें ।
    कृपया उत्तर देने का कष्ट करें।

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    उत्तर
    1. am
      चेतन मन का अर्थ आपके तार्किक और संवेदना्त्मक ज्ञान से है जबकि अचेतन का तात्पर्य आपके भावनात्मक ज्ञान से संबंधित होता है। हम जब चेतन अवस्था में होते हैं तब मन की भावनाओं की अभिव्यक्ति पर नियंत्रण रखने की कोशिश करते हैं लेकिन अचेतन अवस्था में वह नियंत्रण कायम नहीं रहता है। माँ ने अविनाश और अपनी बंगाली बहू से रिश्ता तोड़ लिया है लेकिन अतुल अपने बड़े भाई से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है, इसलिए वह अपने भाई से अलग नहीं हो पाता है।

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  17. चेतन मन का अर्थ आपके तार्किक और संवेदना्त्मक ज्ञान से है जबकि अचेतन का तात्पर्य आपके भावनात्मक ज्ञान से संबंधित होता है। हम जब चेतन अवस्था में होते हैं तब मन की भावनाओं की अभिव्यक्ति पर नियंत्रण रखने की कोशिश करते हैं लेकिन अचेतन अवस्था में वह नियंत्रण कायम नहीं रहता है। माँ ने अविनाश और अपनी बंगाली बहू से रिश्ता तोड़ लिया है लेकिन अतुल अपने बड़े भाई से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है, इसलिए वह अपने भाई से अलग नहीं हो पाता है।

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  18. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    उत्तर
    1. am
      चेतन मन का अर्थ आपके तार्किक और संवेदना्त्मक ज्ञान से है जबकि अचेतन का तात्पर्य आपके भावनात्मक ज्ञान से संबंधित होता है। हम जब चेतन अवस्था में होते हैं तब मन की भावनाओं की अभिव्यक्ति पर नियंत्रण रखने की कोशिश करते हैं लेकिन अचेतन अवस्था में वह नियंत्रण कायम नहीं रहता है। माँ ने अविनाश और अपनी बंगाली बहू से रिश्ता तोड़ लिया है लेकिन अतुल अपने बड़े भाई से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है, इसलिए वह अपने भाई से अलग नहीं हो पाता है।

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  19. उत्तर
    1. सबको अपने मत प्रकाशन का लोकतांत्रिक अधिकार है...लेकिन अच्छे प्रयास की सराहना जरूर होनी चाहिए।

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  20. उत्तर
    1. धन्यवाद मित्र...हम आपके काम आ सके...इसकी हमें खुशी है...

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  21. please upload the charitra chitran of keerat in deepdan(ekanki sanchay)

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  22. Mujhe sanskaar aur bhaavna ke characters ka charitra chitran chahiye

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