पृष्ठ

साप्ताहिक गृहकार्य

कक्षा - 9
दिनांक - 28 सितम्बर , 2017

प्रस्ताव-लेखन

बाढ़ एक प्राकृतिक समस्या है जिसे इनसान के स्वार्थ और लालच ने विकराल रूप प्रदान कर दिया है। - इस विषय पर अपने विचार लिखिए।

अथवा

आपको एक फ़िल्म निर्देशित करने का प्रस्ताव मिला है। आप किस विषय पर फ़िल्म बनाना चाहेंगे और क्यों? फ़िल्म का शीर्षक क्या होगा और उससे आप समाज को क्या संदेश देना चाहेंगे?
 
कक्षा - 12
दिनांक - 28 सितम्बर , 2017
 
 
निबंध-लेखन
 
भारत-पाकिस्तान के राजनैतिक, सामाजिक ,व्यापारिक और सांस्कृतिक रिश्तों पर एक आलोचनात्मक निबंध लिखिए।
 
अथवा
 
नारी का सम्मान करना हर पुरुष की ज़िम्मेदारी है। - इस विषय पर अपने विचार लिखिए।



 
कक्षा - 10
 
निबंध-लेखन

भारतीय संस्कृति में अतिथि को देवता के समान माना जाता है।  वर्तमान परिस्थितियों में यह मान्यता कहाँ तक सत्य के रूप में दिखाई दे रही है ? अतिथि कब बोझ बन जाता है और किस प्रकार ? अपने विचारों द्‌वारा समझाइए।    
                                                 
[लगभग 250 शब्दों में]
 
कक्षा - 9

अपठित गद्‌यांश
 

नीचे लिखे गद्‌यांश को ध्यान से पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए। उत्तर यथासंभव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए-


राजा कृष्णदेव राय के दरबार का सबसे प्रमुख और बुद्‌धिमान दरबारी तेनालीराम अपने मीठे हास्य, कटाक्ष और हाज़िर-जवाबी के बल पर ऐसे-ऐसे असाधारण काम कर गुज़रता था कि उसके आगे बड़े-बड़े दिग्गज और सूरमा धराशायी हो जाते थे।
कोई छह सौ वर्ष पुरानी बात है। विजयनगर का साम्राज्य सारी दुनिया में प्रसिद्‌ध था। उन दिनों भारत पर विदेशी आक्रमणों के कारण प्रजा बड़ी मुश्किलों में थी। हर जगह लोगों के दिलों में दुख-चिंता और गहरी उधेड़-बुन थी। पर विजयनगर के प्रतापी राजा कृष्णदेव राय की कुशल शासन-व्यवस्था, न्याय-प्रियता और प्रजा-वत्सलता के कारण वहाँ प्रजा बहुत खुश थी। राजा कृष्णदेव राय ने प्रजा में मेहनत और सद्गुणों के साथ-साथ अपनी संस्कृति के लिए स्वाभिमान का भाव पैदा कर दिया था, इसलिए विजयनगर की ओर देखने की हिम्मत किसी विदेशी आक्रांता की नहीं थी। विदेशी आक्रमणों की आँधी के आगे विजयनगर एक मज़बूत चट्‌टान की तरह खड़ा था। साथ ही वहाँ लोग साहित्य और कलाओं से प्रेम करने वाले तथा परिहास-प्रिय थे।
उन्हीं दिनों की बात है, विजयनगर के तेनाली गाँव में एक बड़ा बुद्‌धिमान और प्रतिभासंपन्न किशोर था। उसका नाम था रामलिंगम। वह बहुत हँसोड़ और हाज़िर-जवाब था। उसकी हास्यपूर्ण बातें और मज़ाक तेनाली गाँव के लोगों को खूब आनंदित करते थे। रामलिंगम खुद ज्यादा हँसता नहीं था, पर धीरे से कोई ऐसी चतुराई की बात कहता कि सुनने वाले हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते। उसकी बातों में व्यंग्य और बड़ी सूझ-बूझ होती थी। इसलिए वह जिसका मज़ाक उड़ाता, वह शख्स भी द्वेष भूलकर औरों के साथ खिलखिलाकर हँसने लगता था। यहाँ तक कि अक्सर राह चलते लोग भी रामलिंगम की कोई चतुराई की बात सुनकर हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते।
अब तो गाँव के लोग कहने लगे थे, ‘‘बड़ा अद्‌भुत है यह बालक। हमें तो लगता है कि यह रोते हुए लोगों को भी हँसा सकता है।
रामलिंगम कहता, ‘‘पता नहीं, रोते हुए लोगों को हँसा सकता हूँ कि नहीं, पर सोते हुए लोगों को ज़रूर हँसा सकता हूँ।’’
सुनकर आसपास खड़े लोग ठठाकर हँसने लगे।
यहाँ तक कि तेनाली गाँव में जो लोग बाहर से आते, उन्हें भी गाँव के लोग रामलिंगम के अजब-अजब किस्से और कारनामे सुनाया करते थे। सुनकर वे भी खिलखिलाकर हँसने लगते थे और कहते, ‘‘तब तो यह रामलिंगम सचमुच अद्‌भुत है। हमें तो लगता है कि यह पत्थरों को भी हँसा सकता है!’’
गाँव के एक बुज़ुर्ग ने कहा, ‘‘भाई, हमें तो लगता है कि यह घूमने के लिए पास के जंगल में जाता है, तो वहाँ के पेड़-पौधे और फूल-पत्ते भी इसे देखकर ज़रूर हँस पड़ते होंगे।’’
एक बार की बात है, रामलिंगम जंगल में घूमता हुआ माँ दुर्गा के एक प्राचीन मंदिर में गया। उस मंदिर की मान्यता थी और दूर-दूर से लोग वहाँ माँ दुर्गा के दर्शन करने आया करते थे।
रामलिंगम भीतर गया तो माँ दुर्गा की अद्‌भुत मूर्ति देखकर मुग्ध रह गया। माँ के मुख-मंडल से प्रकाश फूट रहा था। रामलिंगम की मानो समाधि लग गई। फिर उसने दुर्गा माता को प्रणाम किया और चलने लगा। तभी अचानक उसके मन में एक बात अटक गई। माँ दुर्गा के चार मुख थे, आठ भुजाएँ थीं। इसी पर उसका ध्यान गया और अगले ही पल उसकी बड़े ज़ोर से हँसी छूट गई।
देखकर माँ दुर्गा को बड़ा कौतुक हुआ। वे उसी समय मूर्ति से बाहर निकलकर आईं और रामलिंगम के आगे प्रकट हो गईं। बोलीं, ‘‘बालक, तू हँसता क्यों है ?’’
रामलिंगम माँ दुर्गा को साक्षात सामने देखकर एक पल के लिए तो सहम गया। पर फिर हँसते हुए बोला, ‘‘क्षमा करें माँ, एक बात याद आ गई, इसीलिए हँस रहा हूँ।’’
‘‘कौन सी बात ? बता तो भला !’’ माँ दुर्गा ने पूछा।
इस पर रामलिंगम ने हँसते-हँसते जवाब दिया, ‘‘माँ, मेरी तो सिर्फ एक ही नाक है पर जब ज़ुकाम हो जाता है तो मुझे बड़ी मुसीबत होती है। आपके तो चार-चार मुख हैं और भुजाएँ भी आठ हैं। तो जब ज़ुकाम हो जाता होगा, तो आपको और भी ज़्यादा मुसीबत...!’’
रामलिंगम की बात पूरी होने से पहले ही माँ दुर्गा खिलखिलाकर हँस पड़ीं। बोलीं, ‘हट पगले, तू माँ से भी मज़ाक करता है !’’
फिर हँसते हुए उन्होंने कहा, ‘‘पर आज मैं समझ गई हूँ कि तुझमें हास्य की बड़ी अनोखी सिद्‌धि है। अपनी इसी सूझ-बूझ और हास्य के बल पर तू नाम कमाएगा और बड़े-बड़े काम करेगा। पर एक बात याद रख, अपनी इस हास्य-वृत्ति का किसी को दुख देने के लिए प्रयोग मत करना। सबको हँसाना और दूसरों की भलाई के काम करना। जा, तू राजा कृष्णदेव राय के दरबार में जा। वही तेरी प्रतिभा का पूरा सम्मान करेंगे।’’
उस दिन रामलिंगम दुर्गा माँ के प्राचीन मंदिर से लौटा, तो उसका मन बड़ा हल्का-फुल्का था। लौटकर उसने माँ को यह अनोखा प्रसंग बताया। सुनकर माँ चकित रह गईं।
और फिर होते-होते पूरे तेनाली गाँव में यह बात फैल गई कि रामलिंगम को दुर्गा माँ ने बड़ा अद्‌भुत वरदान दिया है। यह बड़ा नाम कमाएगा और बड़े-बड़े काम करेगा। उसके साथ ही साथ तेनाली गाँव का नाम भी ऊँचा होगा।




प्रश्न
(i) विदेशी आक्रमणकारी विजयनगर पर हमला करने का साहस क्यों नहीं करते थे ?
                                                               
(ii) रामलिंगम कौन था ? उसकी खूबी क्या थी ?
                                                                                                                              
(iii) माँ दुर्गा की मूर्ति देखकर रामलिंगम के मन में क्या विचार उत्पन्न हुए ?
                                                                                     
(iv) माँ दुर्गा ने प्रकट होकर क्या कहा ?
                                                                                           
(v) प्रस्तुत गद्‌यांश से आपको क्या शिक्षा मिली ?                                                   
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें