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रविवार, 15 अक्तूबर 2017

आत्मदीपो भव



गौतम बुद्ध ने कहा है - आत्मदीपो भव 
जब जब बाहर आलोक कम होता दिखे, अपने भीतर अपनी चेतना का आलोक जलाएँ। इस आलोक में सबकी आज़ादी, सबकी बराबरी और  सबसे भाईचारा जगमग कर उठे... 
आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ

सोमवार, 26 जून 2017

पिता

मैंने अपने एक विद्‌यार्थी को निशांत की कविता 'पिता' पढ़ने को दी क्योंकि उसे विद्‌यालय की काव्य आवृत्ति प्रतियोगिता में हिस्सा लेना है। मैं उस विद्‌यार्थी के साथ स्कूल की लाइब्रेरी में बैठा उसी कविता को पढ़ रहा था और वहीं मेरी एक छात्रा पुस्तक-समीक्षा के लिए पुस्तक पढ़ रही थी। उसने मुझसे पूछा, "सर आप क्या पढ़ रहे हैं?" मैंने उसे कविता के बारे में बताया तो उसने ज़िद किया कि मैं उस कविता की आवृत्ति करूँ। मैंने कविता पढ़ी। कविता समाप्त करने के उपरांत जब मेरी नज़र उस छात्रा पर पड़ी तो मैंने पाया कि उसकी आँखें भर आई हैं। उसने बताया कि उसके पिता नहीं हैं...मैंने उसे सांत्वना देकर कक्षा में भेज दिया। उसके जाने के बाद मैंने महसूस किया कि ईमानदारी से लिखी गई एक अच्छी कविता सच में आपको अंदर तक छू जाती है...धन्यवाद कवि निशांत।





            कविता : पिता कुछ कविताएँ, कवि : निशांत , आवृत्ति : सौमित्र आनंद

मंगलवार, 20 जून 2017

कबीर : बग़ावत के सबसे बड़े ब्रांड

अकेले बैठकर बहुत देर तक सोचता रहा कि आखिर अपनी कक्षा में कबीर को पढ़ाने से पहले उनका परिचय अपने विद्‌यार्थियों को कैसे दूँ... क्या बताऊँ आज की पीढ़ी को कि कबीर कौन थे। फिर सोचा कि क्यों न अपने विद्‌यार्थियों को यह बताया जाए कि कबीर होना क्या होता है...कबीर बग़ावत के सबसे बड़े ब्रांड हैं क्योंकि उन्होंने अपने समय में हर तरह के अन्याय, कुरीति, भेदभाव और असमानता का खुलकर विरोध किया। कबीर ने अपने समय में प्रश्न पूछने की अहमियत को बताया और इनसानियत को सबसे बड़ा धर्म माना।









गुरुवार, 18 मई 2017

शैक्षणिक सत्र - 2017-2018


प्रिय विद्‌यार्थियो,
आप सबका नए शैक्षणिक वर्ष २०१७-२०१८ में हार्दिक स्वागत है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हम अपनी कक्षाओं को ज्ञान की प्रयोगशालाओं में परिवर्तित करने की कोशिश करेंगे ताकि हमारे ज्ञान, अनुभव और कौशल का सम्पूर्ण विकास संभव हो सके। जीवन में ज्ञान प्राप्ति का महत्त्व तब बहुत ज्यादा बढ़ जाता है जब हमारे चारों ओर अज्ञानता का अंधेरा घना हो जाता है क्योंकि अज्ञानता के अंधेरे में मानव का विवेक और उसकी इनसानियत के खत्म हो जाने का खतरा अधिक बढ़ जाता है।
मानव जीवन में आने वाली हर कठिनाई का सामना बुद्‌धि-बल से किया जा सकता है क्योंकि ज्ञान के द्‌वारा हममें साहस, धैर्य, आत्मबल और तर्क-शक्ति का विकास होता है। इनसान जब आदिमकाल में जंगलों में रहता था और सभ्यता से बहुत दूर था तब उसने अपने बुद्‌धि और कौशल का इस्तेमाल कर आग, पहिया, पशुपालन, खेती आदि का विकास करते हुए परिवार, समुदाय, समाज, गाँव और शहर तक का लम्बा किन्तु सफल सफर तय किया।
इनसानी सभ्यता के इस यात्रा में उसके ज्ञान, बुद्‌धि, कौशल और तर्क-शक्ति ने भरपूर सहयोग दिया। आज हम विज्ञान के युग में हैं और तकनीक ने मानव जीवन को अत्यंत सहज और आरामदायक बना दिया है किन्तु इनसानी दिमाग ने आराम नहीं लिया है। वह हर नए दिन के साथ नए आविष्कारों की खोज में लगा हुआ है ताकि इनसानी जीवन को और ज्यादा सुखद और सुरक्षित बनाया जा सके।
 
मेरा सभी विद्‌यार्थियों से विनम्र अनुरोध है कि यदि आपके जीवन में असफलता का दौर लम्बा हो जाए तो अपने सहज ज्ञान, बुद्‌धि, कौशल और तर्क-शक्ति का उपयोग कर, अपने अंधेरे को खत्म करने का प्रयास करें और तब तक हार न माने जब तक सफलता रूपी रोशनी की किरण आप तक न पहुँच जाए।